प्रश्न १०– क्या प्रत्येक मनुष्य की योनि कर्मयोनि है और अन्य सभी प्राणी भोगयोनि में हैं?
उत्तर– कर्तृत्व ओर भोक्तृव्य जीव के स्वाभाविक गुण हैं। इनसे जीव कभी भी मुक्त नहीं हो सकता। हाँ, भिन्न-भिन्न योनियों के कारण इनमें न्यूनता और आधिक्य हो सकता है, किन्तु इनका सर्वथा लोप नहीं हो सकता। मनुष्य में ज्ञान का विकास सम्भव है। शुभाशुभ कर्मों के ज्ञान के लिए सत्यासत्य के ज्ञान की आवश्यकता होती है। जिसको सत्यासत्य का ज्ञान नहीं, वह पाप-पुण्य का भागी नहीं हो सकता, जैसे अबोध् बालक। परमेश्वर ने वेदों में जो विद्या का उपदेश दिया है, वह मनुष्य मात्र के लिए है मनुष्येतर जीवों के लिए नहीं। क्योंकि मनुष्य को ही नैमित्तिक ज्ञान की आवश्यकता होती है। पशु–पक्षी आदि सभी जीवों का जीवन, उनके अपने स्वाभाविक ज्ञान पर निर्भर होता है। उनमें विद्या के अभाव में सत्यासत्य का विवेक नहीं होता। उनके किसी भी कर्म में जो विशेषता होती है, वह उनका जातिगत गुण होता है। उनके वे कर्म विवेक और संकल्प पर आधारित नहीं होते, इसलिए वे कर्म पाप–पुण्य की श्रेणी में नहीं आने से अपने कर्मविपाक से वंचित रहते हैं। इसलिए सभी मनुष्येतर जीव भोगयोनि के अन्तर्गत माने गये हैं। मानवयोनि में ज्ञान क्रमशः बढ़ता है। नवजात शिशु में विद्या का अभाव होने से उसकी क्रियाएं कर्म की श्रेणी में नहीं आती, अतः वह भी एक प्रकार से भोगयोनि ही है। इसी प्रकार पागल मनुष्य में भी विवेक और संकल्प का अभाव होने से उन्हें कर्मयोनि नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार सभी मनुष्यों में ज्ञान और विवेक का भिन्न-भिन्न स्तर होने से उनके कर्मों का उत्तरदायित्व भी भिन्न-भिन्न होता है। पुनरपि मानवयोनि में ज्ञान का विकास सम्भव होने से कर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तुम् का सिद्धान्त केवल मनुष्यों पर लागू होने से दार्शनिकों ने सम्पूर्ण मानवयोनि को सामान्यतया कर्मयोनि ही कहा है।
-डाक्टर धीरज कुमार आर्य
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