प्रश्न – क्या नास्तिक व्यक्ति निष्काम कर्मों को कर सकता है? क्या अच्छे काम करने वाले को उपर्युक्त फल नहीं मिलते हैं? यदि मिलते हैं तो फिर ऐसा विचार करने में क्या हानि है, बिना विचारे तो कोई अच्छे कार्यों में प्रवृत्त भी नहीं होता है।

उत्तर- नास्तिक व्यक्ति किसे कहते हैं, पहले यह समझना चाहिए। मोटे रुप से, जो ईश्वर, आत्मा, पुनर्जन्म, कर्मफल, धर्माधर्म आदि वैदिक सिद्धान्तों को नहीं मानता है, वह ‘नास्तिक’ कहलाता है। नास्तिक व्यक्ति ईश्वर को तो जानना, प्राप्त करना नहीं चाहता, क्योंकि वह उसे मानता ही नहीं। अतः निष्कामता का प्रथम उद्देश्य ईश्वर प्राप्ति, तो उसका होगा ही नहीं। दूसरा उद्देश्य फल की ही भावना न करना है, वह कदाचित् किंचित मात्रा में, किन्हीं कर्मों में हो भी सकती है। अपनी सन्तान, परिवार, समाज, राष्ट्र के लिए नास्तिक लोग भी किंचित् मात्रा में निष्कामता को अपनाते हैं, ऐसा देखने में आता है कि अपनी सेवा, परोपकार के कार्यों का फल स्वयं न चाहकर अन्यों के सुख के लिए चाहते हैं, तो इतने अंशों में निष्कामता नास्तिकों में भी शक्य है, पूर्ण रूप से नहीं। क्योंकि पूर्ण निष्कामता के लिए जिस ज्ञान, विज्ञान को व्यक्ति को प्राप्त करना पड़ता है, वह उसे प्राप्त नहीं होता, होता भी है, तो उसे स्वीकार नहीं करता है।

यह सत्य है कि अच्छा काम करने वालों को यश, मान, धन, प्रतिष्ठा आदि सभी मिलते है, किन्तु सबको नहीं मिलते, परिणामस्वरूप व्यक्ति हताश, निराश होकर दुखी हो जाता है। सकामता से एक दोष यह भी आता है कि व्यक्ति मिथ्या अभिमानी भी बन जाता है। वह ऐसा कि मैं ही कर रहा हूँ, अपनी बुद्धि से सब कुछ कर रहा हूँ, अपनी सामर्थ्य से कर रहा हूँ। वास्तव में व्यक्ति ईश्वर प्रदत्त शक्ति, ज्ञान, सामर्थ्य, साधनों तथा प्रेरणा से करता है। स्वयं जीव का सामर्थ्य तो बहुत कम है। उतने से वह कर्मों को नहीं कर सकता। इसलिए यह विचारना चाहिए कि जो कुछ मेरे पास ज्ञान, बल, सामर्थ्य साधनादि है, वह ईश्वर प्रदत्त हैं, तथा उसी की आज्ञा से तथा उसी को प्राप्त करने के उद्देश्य से कर्मों को कर रहा हूँ। अपने को मात्र कर्त्ता समझना चाहिए।