प्रश्न – क्या ईश्वर बिना ही कर्म के किसी को सुख-दुख देता है?

उत्तर- नहीं, ईश्वर बिना ही कर्मों के किसी व्यक्ति को अपनी ओर से सुख या दुख नहीं देता है, क्योंकि वह न्यायकारी है। न्यायकारी वहीं कहलाता है, जो किसी को जितना जैसा कर्म किया हुआ हो, उसके अनुसार ही फल देता हो। यदि, कर्म की मात्रा या स्तर से कम या अधिक फल देता है, तो वह न्यायकारी नहीं रहेगा, बल्कि पक्षपाती हो जाएगा।

लोक में भी हम देखते हैं कि किसी श्रमिक को जिसका प्रतिदिन का १00 रुपये पारिश्रमिक होता है, तो उसे १५ दिन का कार्य करने पर १५00 रुपये दिया जाना उचित है। यदि कोई उस राशि से कम या अधिक देता है, तो उसे उचित नहीं माना जाता है। कईं बार पुण्य भावना से भी सेठ आदि दाता पारिश्रमिक अधिक दे देते हैं, पर यह दूसरों के कर्मों का परिणाम – प्रभाव है। ऐसा ईश्वर में घटित नहीं होता।