प्रश्न -किन्हीं शास्त्रों में लिखा है कि ‘ज्ञानात् मुक्ति’ ज्ञान से ही मुक्ति हो जाती है। तो फिर कर्म करने की आवश्यकता ही क्या है?

उत्तर- यह सत्य है कि शास्त्र में लिखा है कि ज्ञान से मुक्ति होती है किन्तु इसका अर्थ यह नहीं लेना चाहिये कि मुक्ति की प्राप्ति के लिए कर्म व उपासना को नितान्त छोड़ दें। ‘केवल ज्ञान प्राप्त ही करते रहो’ वहाँ उस प्रकरण में केवल ज्ञान की प्रधानता बतायी गई है। न कि एकाकीपन। ध्यान देने की बात है कि बिना कर्म के ज्ञान की भी प्राप्ति नहीं हो सकती और ज्ञान प्राप्त करके व्यवहार में न लावें, उपासना न करें तो ज्ञान का कोई लाभ  भी नहीं होता है। ज्ञान होता इसलिए है कि उसे व्यवहार में लाया जाये।

यदि ‘ज्ञानात् मुक्ति’ से मात्र ज्ञान लिया जाये कर्म को छोड़ना अर्थ लिया जाये तो, फिर वेद से विरोध उत्पन्न होगा। वेद में कहा है कि जो कर्म नहीं करता वह दस्यु है। हे मनुष्य ! तू कर्म करता हुआ सौ वर्ष तक जीने की इच्छा कर। गीता में भी अनेकत्र (३//८, ३//१९) भगवान कृष्ण ने कर्म करने का आदेश दिया है।

        कर्म के बिना तो शरीर को जीवित रखने के लिए खाने-पीने, पहनने को भी नहीं मिलता। वैदिक सिद्धान्त के अनुसार यथार्थ ज्ञान, निष्काम कर्म तथा समर्पित भाव युक्त शुद्ध उपासना करने पर ही व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त होता है, केवल ज्ञान से मुक्ति नहीं होती है।