प्रश्न – कर्मों का फल कौन देता है?

उत्तर- जीवों द्वारा किए गए कर्मों का मुख्य फलदाता सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, परमपिता परमात्मा ही है। किन्तु, मनुष्यों के कर्मों का फल केवल ईश्वर ही देता है, ऐसा नहीं है। बाल्य काल में बच्चों को उनके द्वारा किए गए अच्छे बुरे कर्मों का फल उनके माता-पिता आदि द्वारा दिया जाता है। विद्यालय में विद्या पढ़ते हुए अध्यापक आचार्यों द्वारा भी विद्यार्थियों के कर्मों का फल दिया जाता है। समाज, गांव, नगर में रहते हुए अच्छे बुरे कर्मों का फल समाज के नेता, सरपंच, पुलिस, न्यायाधीश, नगरपालिका आदि द्वारा भी दिया जाता है। सेवा नौकरी आदि करते हुए सेवक, कर्मचारी, कार्यकर्त्ताओं को उनके स्वामी, सरकार, अधिकारियों द्वारा भी फल दिया जाता है। किन्तु, माता-पिता से लेकर राजा तक सभी कर्मफलदाता प्रथम तो पूरे कर्मों को ठीक प्रकार देख, सुन, जान ही नहीं पाते हैं और फिर अल्पज्ञ, अल्पशक्तिमान, राग, द्वेष आदि गुणों से युक्त होने से यह आवश्यक नहीं कि मनुष्यों के कर्मों का पूरा-पूरा फल दे देवें। वे कम-अधिक भी दे सकते हैं। परन्तु, परमात्मा मनुष्यों की प्रत्येक क्रिया को लगातार देख, सुन, जान रहा होता है। इसमें प्रमाण-

हे भद्र ! जो तू यह मानता है कि मैं आत्मा अकेला ही अन्दर बैठा हूँ तो ठीक नहीं, क्योंकि सबके पुण्य व पाप कर्मों को देखने वाला सर्वज्ञ, न्यायकारी परमात्मा मुनि तेरे हृदय में अवस्थित रहता है।

-मनु. ८//६२

जिन कर्मों का फल उपयुक्त व्यक्तियों द्वारा दिया जा चुका होता है, उनमें जो कमी होती है या जिन कर्मों का फल किसी भी व्यक्ति के द्वारा नहीं मिलता उन सब अवशिष्ट कर्मों का फल अन्त में ईश्वर ही दे देता है। बुद्धिमान व्यक्ति स्वयं भी अपने बुरे कर्मों का फल किन्हीं अंशों तक प्राप्त करता है।

यह हमारा पात्र अर्थात कर्माशय पूर्ण रूप से भरा हुआ है, इसलिए फल देने में समर्थ है।

-अथर्व १२//३//४८

ये पके हुए समर्थ कर्म हम कर्त्ता को ही फल देने वाले होते हैं। स्वयं आत्मा ही कर्म करता है व उसके अनुसार फल भोगता है तथा कर्मों के अनुसार ही विभिन्न योनियों में जन्म लेकर संसार में भ्रमण करता है। और स्वयं ही अपने पुरुषार्थ से संसार के बन्धनों और आवागमन के चक्र से छूटकर मुक्ति प्राप्त करता है।

        -चाणक्यनीति ६//८