प्रश्न – अच्छे कर्म करने वाले अर्थात धार्मिक व्यक्ति पर बाधा कष्ट आते हैं? क्या यह उनके अच्छे कर्मों का फल है?

उत्तर- अच्छे कर्म करने वाले व्यक्ति को ईश्वर की तरफ से सदा सुख, शान्ति, प्रेम, सहयोग, उत्साह, प्रेरणा आदि ही मिलते हैं। इसमें किसी भी प्रकार का विकल्प नहीं है। किन्तु, परिवार, समाज की ओर से कभी-कभी सुख, सहयोग, प्रेम, सान्त्वना के विपरीत भय, तिरस्कार, घृणा, उपेक्षा, विरोध, निन्दा, अन्याय आदि भी प्राप्त होते हैं।

ऐसे ही बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति को ईश्वर की ओर से तो सदा दुखादि ही मिलते हैं, किन्तु, परिवार, समाज के व्यक्ति के द्वारा कभी-कभी ऐसे व्यक्ति को सुख, सहयोग, प्रेम आदि भी मिलते हैं।

अच्छे कर्मों का फल सुख ही है। किन्तु समाज में अनेक बार इसके विपरीत यह देखने को मिलता है कि अच्छे काम करने वाले दुखी और बुरे काम करने वाले सुखी हेाते हैं। यह सब विपरीत स्थिति अज्ञानी, अन्यायकारी स्वार्थी, व्यक्तियों व समाज के द्वारा ही उत्पन्न की जाती है। अच्छे कर्म करने वालों में किन्हीं के जीवन में कष्ट, बाधायें देखी जाती हैं। उनके अनेक कारण हैं-

(१)    अच्छे काम करने वाले आदर्श व्यक्तियों के कारण समाज में जो बुरे काम करने वाले अनादर्श व्यक्ति हैं, उनके हितों अर्थात् स्वार्थों में बाधा उत्पन्न होती है, परिणाम स्वरूप वे बुरे व्यक्ति अच्छे व्यक्तियों तथा, उनके कार्यों का अनेक प्रकार से विरोध करते हैं, कष्ट पहुँचाते हैं।

 (२)   आज की परिस्थिति में समाज में अच्छे व्यक्तियों की संख्या कम है तथा वे संगठित नहीं हैं। न ही वे किसी योजनाबद्धरूप से बुरे व्यक्तियों के बुरे कार्यों का विरोध करते हैं।

(३)    इसके विपरीत बुरे व्यक्तियों की संख्या अधिक है। यदि कहीं कम भी है, तो वे योजनाबद्धरूप से अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए मिलकर कार्य करते हैं।

(४)    अच्छे व्यक्ति अनेक बार किन्ही विषयों में, किन्हीं व्यवहारों में अपनी अज्ञानता के कारण भी भूल से, शीघ्रता से, परिणामों, प्रभावों को ठीक प्रकार बिना विचारे कार्यों को कर देते हैं। परिणाम स्वरूप उनके कार्यों में बाधायें बढ़ जाती हैं।

(५)    अनेक बार अच्छे विचारों वाले व्यक्ति अपने सामर्थ्य, अनुभव, अभ्यास, साधनों की अपेक्षा अधिक मात्रा में बडे़-बड़े कार्यों को प्रारंभ कर देते है। परिणाम स्वरूप उनको उन कार्यों में सफलता नहीं मिलती है और कष्ट होता है।

(६)    अच्छे कार्यों को करना, सत्य व आदर्श पर चलना स्वभावतः परिश्रमसाध्य, कष्टकर ही होता है। इसके विपरीत बुरे कार्यों को करने व असत्य, अनादर्श मार्ग पर चलने में कोई विशेष पुरुषार्थ आदि की अपेक्षा नहीं होती है।

(७)    अच्छे व्यक्तियों को प्राप्त होने वाले सम्मान, प्रतिष्ठा, सुख, समृद्धि को सहन न करके बुरे व्यक्ति ईर्ष्या, द्वेष, प्रतिस्पर्धा के कारण अच्छे व्यक्तियों के विरुद्ध झूठे मनगढ़न्त मिथ्या आरोप लगाकर उनको फँसा देते हैं तथा सामान्य जनता को अच्छे व्यक्तियों का विरोधी बना देते हैं।

(८)    अच्छे कामों को करने वाले आदर्श व्यक्तियों को जो कष्ट बाधा आदि का सामना करना पड़ता है, उसे अच्छे कर्मों का फल तो नहीं मानना चाहिये, किन्तु इन कष्टों बाधाओं को अच्छे कर्मों का परिणाम, प्रभाव कहा जा सकता है।

अच्छे कर्मों का बुरा प्रभाव, परिणाम, सत्य, आदर्श, न्याय को न समझने वाले अज्ञानी, स्वार्थी लोगों के द्वारा ही उत्पन्न किया जाता है। बुद्धिमान धार्मिक व्यक्तियों पर तो अच्छे कर्मों का प्रभाव या परिणाम अच्छा ही होता है। वे अच्छे कर्म करने का तो अच्छा प्रतिभाव देते हैं।