अच्छी आदतें प्रयत्नपूर्वक ही अपनाई जातीं हैं।

 

यह बात सभी मानते हैं कि हमें जो कुछ भी मिलता है, वह हमने कमाया हुआ होता है। लेकिन साथ ही, यह भी माना जाता है कि अच्छी आदतें हमारे पास अपने आप आ जाती हैं, चाहे हम उन्हें अर्जित करने के लिए अपनी ओर से कुछ भी न करें। अच्छी आदतों के लिए, केवल, ईश्वर की कृपा ही चाहिए होती है। यह सही नहीं है। इसे एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं। यदि हम अपने भीतर सच बोलने की आदत डालना चाहते हैं, तो ईश्वर की कृपा सीधे तौर पर हमारे अंदर यह आदत नहीं लाएगी। इस आदत को अपने भीतर लाने का एक ही तरीका है और वह है- सत्य क्या है और असत्य क्या है, इसका ज्ञान प्राप्त करना। और विवेक के प्रयोग के बिना कोई ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता है। ज्ञान प्राप्त करने के बाद, हमें अपनी बुद्धि के अनुसार भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में सत्य बोलने का अभ्यास करना चाहिए, जब तक कि वह हमारी आदत न बन जाए। इसी तरह अन्य अच्छी आदतें खुद ही अर्जित करनी पड़ती हैं। हमें विश्वास करना चाहिए कि हम और केवल हम ही अपनी अच्छी और बुरी आदतों के लिए जिम्मेदार हैं। ईश्वर की कृपा का अर्थ है, हमारी क्षमताओं और ज्ञान में वृद्धि के लिए ईश्वर द्वारा हमारी पात्रता के आधार पर हमें चुनना। अपने पुरुषार्थ से पात्रता अर्जित करने पर ईश-कृपा स्वतः ही हम पर हो जाती है।