प्रश्न – समाज में व देश में चोरी करने वाले, रिश्वत लेने वाले, मिलावट करने वाले, अधिक मुनाफा लेने वाले, झूठी गवाही, असत्य, छल-कपट आदि गलत कार्यों को करके धन, सम्पत्ति इक्ट्ठी करने व गलत कार्य करने वाले व्यक्ति सुखी दिखाई देते हैं। क्या ईश्वर उनको देखता नहीं है? दण्ड नहीं देता? जब ऐसे गलत कार्य करने वाले सुखी देखे जाते है तो धर्म, सदाचार, नैतिकता पर से लोगों का विश्वास ही हट जाता है और अन्य लोग भी ऐसे लोगों का अनुकरण करके उनकी तरह बुरे काम करने लग जाते है और इससे सारे समाज, राष्ट्र में भ्रष्टाचार फैल जाता है जो आज हम स्पष्ट देखते है।
उत्तर- यह पहले से बताया जा चुका है कि मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है। वह अच्छा, बुरा जैसा चाहे अपनी इच्छा से कर सकता है। झूठ, छल-कपट, चोरी, मिलावट, रिश्वत, शोषण, अन्याय आदि के द्वारा वह क्या प्राप्त करेगा? रुपया-पैसा। इन रुपयों से वह अच्छा मकान, गाड़ी, वस्तु, भोजन, मनोरंजन के साधनों को प्राप्त करके भी क्षणिक सुख ही तो पाता है। किन्तु, इन साधनों व साधनों के पीछे बुरे कर्मों से प्राप्त धन का जो दोष है, पाप है, उसका डंक, विष व उसकी आग उसे अन्दर ही अन्दर चुभती, जलाती रहती है।
जब अधर्मात्मा मनुष्य धर्म की मर्यादा छोड़, जैसे तालाब के बाँध को तोड़ जल चारों ओर फैल जाता है, वैसे ही मनुष्य मिथ्याभाषण, कपट, वेदों का खंडन, और विश्वासघात आदि कर्मों से पराये पदार्थों को लेकर, प्रथम बढ़ता है और धनादि ऐश्वर्य से खान-पान, वस्त्र, आभूषण, यान, स्थान, मान, प्रतिष्ठा को प्राप्त होता है। अन्याय से शत्रुओं को भी जीतता है। पश्चात् शीघ्र नष्ट हो जाता है, जैसे जड़ से कटा हुआ वृक्ष नष्ट हो जाता है, वैसे ही अधर्मी नष्ट हो जाता है।
-मनु-स्मृति ४//५६
मनुष्य निश्चय करके जाने कि इस संसार में जैसे, गाय आदि की सेवा का फल दूध शीघ्र प्राप्त नहीं होता, वैसे ही किए हुए अधर्म का फल शीघ्र प्राप्त नहीं होता, किन्तु वह किया हुआ अधर्म धीरे-धीरे कर्त्ता के सुखों को रोकता हुआ सुख के मूलों को काट देता है, पश्चात् अधर्मी दुख ही दुख भोगता है। इसलिए, यह कभी नहीं समझना चाहिए कि कर्त्ता का किया हुआ कर्म निष्फल होता है।
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