प्रश्न – संसार में शुभ कर्म करने वाले दुखी और अशुभ कर्म करने वाले सुखी क्यों दिखाई देते हैं?

उत्तर- यह धारणा नितान्त मिथ्या है कि सुकर्मी दुखी होते है तथा कुकर्मी सुखी होते हैं। बाहर से दुखी दिखाई देने वाला सुखी, प्रसन्न होता है और बाहर से सुखी दिखने वाला भीतर से कितना दुखी, अशान्त, चिन्तित, भयभीत होता है, यह वही जानता है, बाहर के व्यक्ति नहीं जान सकते हैं। यह सुकर्मी और कुकर्मी को देखने वाले की भ्रान्ति है। उनका परीक्षण करने में भ्रान्ति है। उनको गहराई से परीक्षण करना नहीं आता है। अज्ञानी-शास्त्र ज्ञान से हीन, अकुशल परीक्षकों का यह निर्णय होता है कि कुकर्मी सुखी है व सुकर्मी दुखी है। जो बाहर से दिखाई देता है वह भीतर से वैसा नहीं होता है। अनेक बार ऐसा देखने में आता है कि कुछ आम, सेव, अनार बाहर से परिपक्व, अच्छे दिखाई देते हैं, परन्तु अन्दर से सड़े होते हैं। इसके विपरीत कुछ फल बाहर से कुछ दाग वाले, कटे, फटे, गले होते हैं, किन्तु अन्दर से वे बिल्कुल अच्छे होते हैं। यही स्थिति सुकर्मी व कुकर्मी व्यक्तियों के जीवन में होती है। कुछ अच्छे काम करने वाले दुखी होते हैं और कुछ बुरे काम करने वाले सुखी देखे जाते हैं।