प्रश्न – मानसिक, वाचनिक, शारीरिक इन तीन प्रकार के पाप कर्मों में अधिक दण्ड किसको मिलता है?
उत्तर- विशिष्ट परिस्थितियों को छोड़कर सामान्य रूप से मानसिक पापों की अपेक्षा वाचनिक पापों का तथा वाचनिक पापों की अपेक्षा शारीरिक पापों का अधिक दण्ड मिलता है। इसका कारण यह है कि मानसिक व वाचनिक पाप की अपेक्षा शारीरिक पाप की स्थिति में व्यक्ति अधिक पीड़ित अर्थात् दुखी होता है। यदि अधर्म या पाप की भावना कम है, तो कर्म मन तक ही सीमित रहते हैं। किन्तु पाप की भावना से वेग बढ़ जाने पर वे वाणी तक आ जाते हैं अर्थात् व्यक्ति न केवल पाप करने का मन में विचार करता है, अपितु वाणी से भी अन्यों को बताता है कि मैं ऐसा करूँगा। भावना तथा संवेगों के और अधिक होने पर व्यक्ति वाणी तक सीमित न रहकर शरीर से भी पाप कर देता है। पाप, भावना, संवेग के अधिक होने के कारण भी शारीरिक पाप में सबसे अधिक, वाचनिक में उसके कम तथा मानसिक पाप में सब से कम दण्ड मिलता है। शरीर से पाप किये जाने पर वाणी व मन से भी पाप होता है। इसी प्रकार, वाणी से पाप किये जाने पर मन से भी अनिवार्य रूप से पाप हो ही जाता है। इसलिए, शारीरिक पाप वाचनिक व मानसिक पाप से अधिक दण्डनीय होता है।
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