प्रश्न – मनुस्मृति में आठ प्रकार के घातक पापी बताये गये हैं- समर्थन करने वाला, काटने वाला, मारने वाला, खरीदने वाला, बेचने वाला, पकाने वाला, परोसने वाला तथा खाने वाला। इनमें सभी लोग बराबर पापी होते हैं या कम अधिक होते हैं?
उत्तर- सामान्य रूप से माँस खाने वाले व्यक्ति को ही अधिक पापी माना गया है। क्योंकि यदि, वह खाने की इच्छा न करे, न खाये तो कौन किसी प्राणी को मारेगा, बेचेगा, पकायेगा? इस प्रकार के अनेक हेतुओं से खानेवाला यद्यपि अन्तिम पापी है, इससे पूर्व प्रकार के भी अन्य पापी बन चुके हैं। पुनरपि खानेवाले को ही अधिक पापी माना जाता है। फिर भी किन्हीं परिस्थितियों में खाने वाले से अतिरिक्त अन्य गिनाये गए व्यक्ति भी अधिक पापी हो सकते हैं, यथा, मांस खाने की प्रेरणा देने वाला लोगों के मन में माँस खाने के गुणों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करता है। मांसादि अभक्ष्य पदार्थों के खाने से होने वाले लाभों, महत्त्वों का मिथ्या प्रचार-प्रसार करता है तो, जन सामान्य में उन पदार्थों को खाने की इच्छा उत्पन्न हो जाती है, जैसे, आजकल अण्डों के प्रयोग के विषय में बढ़ा हुआ प्रचलन देखा जाता है।
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