प्रश्न – मनुष्य को जो सुख दुख मिलता है, क्या वह उसके अपने ही कर्मों का फल है या वह किसी अन्य के भी कर्म के कारण सुख-दुख प्राप्त कर सकता है?
उत्तर- सिद्धान्त यह है कि मनुष्य को अपने ही कर्मों का फल मिलता है, दूसरे के कर्मों का नहीं, किन्तु, दूसरे के कर्मों के परिणाम व प्रभाव से सुख-दुख की प्राप्ति कर सकता है।
आज के लोगों में यह धारणा दृढ़ता से बैठी हुई है कि मनुष्य जो कुछ भी सुख दुख भोगता है, वह उसके अपने ही कर्मों का फल होता है। जब भी कोई दुखदायी घटना घटती है, तो सभी लोग यह कहकर सान्त्वना देते हैं कि ‘ऐसा लिखा था, इसने कभी बुरा किया होगा, जो अब फल रूप में मिल रहा है’, किन्तु, सर्वांश में यह सत्य नहीं है।
मनुष्य अपने कर्मों के अतिरिक्त अन्यों के द्वारा किए कर्मों से भी परिणाम-प्रभाव के रूप में सुख दुख को भोगता है।
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