प्रश्न – प्रायश्चित क्या है? क्या बुरे कर्मों के फल को नष्ट या कम किया जा सकता है?
उत्तर- किये गये बुरे कर्मों के प्रति मन में ग्लानि, खिन्नता, दुख की अनुभूति करना तथा ऐसे कर्मों को भविष्य में न करने की दृढ़ प्रतिज्ञा करना प्रायश्चित कहलाता है। किसी बुरे कर्म के विषय में प्रायश्चित करने से उसके फल से हम बच नहीं सकते, न उसमें किसी प्रकार की कमी आती है। तो फिर प्रायश्चित करने का क्या लाभ है ? इसका उत्तर यह है कि यद्यपि प्रायश्चित से कर्म-फल नष्ट नहीं होता, पुनरपि इसका बहुत लाभ है।
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प्रायश्चित करने से मन पर बुरे कर्मों का संस्कार नहीं बनता है, अथवा कम बनता है और जो कुछ क्षीण सा बुरे कर्म का संस्कार बना है, वह नष्ट हो जाता है। और जब वह संस्कार नहीं रहता या कम रहता है, तो बुरे कर्म करने की पुन: अन्त: करण में इच्छा नहीं होती है या अपेक्षाकृत कम होती है, यह प्रायश्चित का बहुत बड़ा लाभ है।
वस्तुत: बुरे कर्मों को बार-बार करने में ये संस्कार ही प्रमुख भूमिका निभाते हैं। यह हम अपने जीवन में आत्मनिरीक्षण करके देख सकते हैं। अनेकों ऐसे कर्म हैं, जिन्हें हम बुरा मानते हैं, स्थूल रूप से उन्हें करना भी नहीं चाहते, उनको त्याज्य समझते हैं। किन्तु, उन बुरे कर्मों के संस्कार इतने प्रबल होते हैं कि हमें वैसा करने के लिए प्रेरित कर ही देते हैं।
जो पापकर्म हो चुका, उसके लिए प्रायश्चित करें अर्थात् निश्चित रूप से यह ठान ले और प्रतिज्ञा करें कि मैं पुनः इस प्रकार का पाप नहीं करूँगा। इससे वह व्यक्ति पवित्र आचरण वाला बन जाता है।
-मनुस्मृति ११//२३
प्रायश्चित कर्त्ता प्रायश्चितकाल में अपनी शक्ति के अनुसार अधिक से अधिक गायत्री मन्त्र और मन को पवित्र करनेवाले अघमर्षण मन्त्रों का जप करे। ऐसा करना सभी व्रतों में प्रायश्चित के लिए उत्तम माना गया है। बुरे कर्मों के संस्कार न बने, हमारा जीवन पवित्र बना रहे और उन्नति को प्राप्त होता रहे, इसलिए, प्रायश्चित बहुत महत्वपूर्ण साधन है।
-मनुस्मृति ११//१८
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