प्रश्न – जीवन-मुक्त व्यक्ति अपने बचे शुभ-अशुभ कर्मों का फल भोगता है या नहीं?

उत्तर- जी हाँ, भोगता है। जीवन-मुक्त मनुष्य उस को कहते हैं, जिसने ईश्वर साक्षात्कार कर लिया हो तथा ईश्वर से समाधि अवस्था में प्राप्त विशेष ज्ञान-विज्ञान से अविद्या के समस्त संस्कारों को दग्धबीज अवस्था में नष्ट कर दिया हो। ऐसे व्यक्ति का यह शरीर अन्तिम होता है।

इस शरीर के नष्ट होने के पश्चात् आगे कोई नया शरीर नहीं मिलता है। वह जीवात्मा समस्त प्राकृतिक बन्धनों से मुक्त ईश्वर के निकट मोक्षानन्द की अनुभूति करता है। ऐसा जीवन-मुक्त मनुष्य जितने साल तक जीवित रहता है, तब तक इसी जीवन में अपने अवशिष्ट कर्मों को भोगता रहता है। शेष कर्म जो बच जाते हैं, उन्हें वह मुक्ति की समाप्ति के पश्चात् जब पुनः मनुष्य शरीर धारण करता है, तब भोगता है। इस विषय से सम्बन्धित एक वैदिक सिद्धान्त का परिज्ञान रखना चाहिये, वह यह है कि मुक्त जीवात्मा के अविद्य़ा के संस्कार तो सारे नष्ट हो जाते हैं, किन्तु कर्म फिर भी अवशिष्ट रहते हैं। सारे कर्म किसी भी जीवात्मा के द्वारा नहीं भोगे जाते हैं। मुक्तावस्था में विद्यमान जीवात्मा के भी कुछ न कुछ तो शुभाशुभ कर्म शेष रहते ही हैं। उन्हीं के कारण मुक्ति काल का आनन्द भोगकर वह पुनः मनुष्य शरीर धारण करता है।