प्रश्न – जब मनुष्य ने बुरे कर्म किये, परिणामस्वरूप फल भोगने के लिए पशु योनि में गया वहाँ पर कुछ वर्षों तक कुछ योनियों में बुरे कर्मों का फल भोगा। अब बुरे कर्म समाप्त होने पर वह मनुष्य योनि में कैसे आयेगा? क्योंकि पशु योनि में उसने मनुष्य योनि की तरह अच्छे कर्म तो किये नहीं?
उत्तर- कर्म के विषय में ईश्वर की यह व्यवस्था है कि जब तक ५0%-५0% अच्छे बुरे कर्म होते हैं तब तक जीव को मनुष्य योनि मिलती है अर्थात् ५0% से अधिक अच्छे कर्म होने पर वे चाहें ५५%, ६0%, ७0% या ८0% हो, तब तक जीवों को उच्च, उच्चतर, उच्चतम स्तर की मनुष्य योनि ही मिलती रहती है। इसके विपरीत यदि ५0% से अधिक अर्थात् ५५%, ६0%, ७0%, ८0% बुरे कर्म होते हैं तो पशु, पक्षी आदि के रूप में निम्न, निम्नतर और निम्नतम स्तर की योनियाँ मिलती हैं। मनुष्य के अतिरिक्त निकृष्ट पशु, पक्षी आदि योनियों में जीवात्मा अपने बुरे कर्मों को भोग लेता है, तो अच्छे बुरे कर्म पुनः बराबर हो जाते हैं और ईश्वर अपने नियम के अनुसार उस जीवात्मा को मनुष्य योनि में भेज देता है। मनुष्य योनि कर्मप्रधान योनि है, वहाँ वह जाकर अपनी इच्छा से पुनः अच्छे बुरे कर्म करता है।
उदाहरणः- मनुष्य सामान्य रूप में समाज में स्वतंत्र रहते हैं, कमाते हैं, खाते-पीते हैं, इस प्रकार वह विविध भोग करते हैं। किन्तु एक मनुष्य जब हत्या, चोरी, डाका आदि बुरे कर्म करता है तो सरकार उसे कानून के अनुरूप १0 वर्ष तक जेल में भेज देती है। जेल में वह सब प्रकार से परतंत्र हो जाता है। १0 वर्ष पश्चात् जब उसकी सजा की अवधि पूरी हो जाती है, तो पुनः छूटकर स्वतंत्र मनुष्य समाज में लौट आता है। ऐसे ही पशु योनि से मनुष्य योनि में लौटना समझना चाहिये।
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