प्रश्न – क्या शुभ व अशुभ कर्म बराबर किये जाएँ, तो वे बिना ही फल दिए नष्ट हो सकते हैं?
उत्तर- मनुष्य प्रत्येक विषय में पूर्ण ज्ञानी न होने के कारण अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के कर्म करता है। दोनों प्रकार के कर्मों का अपना-अलग अस्तित्व है। दोनों का अलग-अलग सुख-दुख रूप में फल मिलता है। अच्छे कर्मों का फल सुख तथा बुरे कर्मों का फल दुःख मिलता है। वैदिक कर्म मीमांसा के अनुसार- अच्छे-बुरे कर्मों में जमा घटा अर्थात् प्लस (+) माईनस (-) नहीं होते।
उदाहरण (१) ऐसा नहीं होता कि किसी ने १00 अच्छे कर्म किए हों तथा २0 बुरे कर्म किए हों तो १00 अच्छे कर्म में से २0 बुरे कर्म कटकर अगले जन्म में फल देने के लिए केवल ८0 शुभ कर्म ही बचे रह जाएँ।
(२) किसी ने १00 बुरे कर्म किये हों और २0 अच्छे कर्म किए हों तो ८0 बुरे कर्म अगले जन्म में फल देने के लिए बच जाएँ ऐसा भी नहीं होता।
यदि ऐसा होता तो प्रत्येक प्राणी केवल सुखी या केवल दुखी होता। परन्तु संसार में ऐसा दिखाई नहीं देता। यहाँ तो प्रत्येक मनुष्य, प्राणी सुखी व दुखी सम्मिलित दिखाई देते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि पूर्व जन्म में किये गये अच्छे व बुरे दोनों प्रकार के कर्मों का फल मनुष्य को इसी जीवन में मिलता है।
इसलिए, वैदिक दार्शनिक सिद्धांतों को जानकर हमें यह मिथ्या धारणा अपने मन से निकाल देनी चाहिये कि झूठ, छल, कपट, हिंसा, अन्याय, चोरी, जारी, विश्वासघात, मिलावट, रिश्वत, निन्दा, चुगली, अपमान, मिथ्या-आरोप आदि जो बुरे कर्म किये हैं, वे किसी भी प्रकार से दान, यज्ञ, सेवा, परोपकार, प्रशंसा आदि से नष्ट किए जा सकते हैं, अथवा उनको घटाकर कम किया जा सकता है। चोरी, रिश्वत, डाके, छल, कपट से कमाये धन से दान, यज्ञादि परोपकार में लगा देने से पाप कर्म धुलते नहीं हैं। पापी दानवीर बनकर, अपनी प्रशंसा करवाकर, फोटो छपवाकर, गुणगान करवाकर, मालाएँ पहनवाकर विशुद्ध धर्मवीर नहीं बन जाता। हाँ, जो उसने अच्छे कर्म किये हैं, उनका फल तो उसे सुख रूप में अच्छा ही मिलेगा। किन्तु, बुरे कर्मों का भी फल उसे हर हालत में अवश्य ही भोगना पड़ेगा।
तर्क- किसी जीव के पाप-पुण्य बराबर मात्रा में होते हैं, और एक दूसरे से घटकर शून्य हो जाते हैं, तो फिर उस जीवात्मा का क्या होगा? कौन सा जन्म मिलेगा? सुखदायी योनि मिलेगी या दुःखदायी? ऐसा भी क्यों? इन प्रश्नों का समाधान भी हो जायेगा।
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