प्रश्न – क्या वेदादि शास्त्रों में बताये कर्मों को न करने पर दण्ड मिलता है?

उत्तर- इस विषय में ऐसा जानना चाहिये कि जो कर्म सामान्य रुप से सभी मनुष्यों के द्वारा अवश्य ही करने योग्य होते हैं, जिनको किए बिना मनुष्य का जीवन सुखी, शान्त, सन्तुष्ट नहीं होता है, उनको जो मनुष्य नहीं करता है वह दोषी होता है।

कर्म करते हुए सौ वर्ष तक जीने की कामना करो।

-यजुर्वेद ४०//२

जो कर्म नहीं करता वह दस्यु है, उसे कोई सुख नहीं होवे, जो व्रतहीन है वह मनुष्य नहीं है। हे न्यायकारी ईश्वर! तुम शत्रुओं के समान उसका वध कर दो अथवा दास के समान उस पर अनुशासन करो।

-ऋग्वेद १०//२२//८

वेदादि शास्त्रों में सैकड़ों, हजारों प्रकार के कर्मों का निर्देश किया गया है। सभी को तो एक मनुष्य नहीं कर सकता। किन्तु, ऐसे कर्मों को जो सभी मनुष्यों के लिए वर्णाश्रमस्थ सामान्य रूप से करने योग्य, उचित, आवश्यक, लाभकारी कर्तव्य है, उनको जो मनुष्य नहीं करता है वह दोषी होता है। जैसे कि वेद का पढ़ना सभी मनुष्यों के लिए ईश्वर की ओर से अनिवार्य है। यदि कोई व्यक्ति माता-पिता के अज्ञान, आलस्य, प्रमाद, राग, गुरुकुल की व्यवस्था न होने आदि किसी भी कारण से नहीं पढ़ता है, तो वेद को न पढ़ने से एक ओर तो वह वास्तविक तत्वज्ञान से वंचित होगा, जिससे उसके कर्म-उपासना भी तदनुरूप न हो सकेंगे। यह तो उसकी हानि होगी ही। दूसरी तरफ वह ईश्वर की ओर से दण्डनीय भी होगा। क्योंकि वेद पढ़ना सबका आवश्यक कर्म है।