प्रश्न – क्या नये कर्मों का पुराने कर्मफल पर प्रभाव पड़ता हूँ? अर्थात् किसी विधि से कर्म के फल को न्यून वा अधिक कर सकते हैं?

उत्तर- नये कर्मों का पुराने कर्मों के फलों पर प्रभाव तो पड़ता है, किन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि कर्मों के फलों में कोई कमी हो जाती है। कर्मों का फल तो उतना ही भोगना पड़ता है। हाँ, ज्ञान विज्ञान की प्राप्ति, सामर्थ्य की प्राप्ति से कर्मों का फल भोगते हुए व्यक्ति जो अनुभूति करता है, उसमें न्यूनता व अधिकता हो जाती है।

यथा कोई बुरा कर्म करने वाला व्यक्ति हिंसा, चोरी, डाका, या अन्य कोई पाप कर्म करके उसके फल से बचने के लिए छिप जाता है या कहीं दूर भाग जाता है। अन्यत्र पुनः संयोग वशात् किसी सज्जन व्यक्ति के सत्संग, स्वाध्याय या शिक्षा, प्रेरणा, स्वाध्याय, अध्ययन, चिन्तन-मनन आदि द्वारा अपने मन बुद्धि को सुसंस्कृत बना लेता है। जिन बुरे कर्मों को पहले अच्छा मान रहा था, वह उन्हें अब बुरा मानता है और स्वयं समाज, राजा, न्यायधीश के समक्ष उपथित होकर सहर्ष दण्ड प्राप्त करने की प्रार्थना करता है। उस अपराधी को इस स्थिति में जब कारावास या अन्य प्रकार के परिश्रम का दण्ड मिलता है, तो वह उतना दुखी नहीं होता, जितना कि उस काल में होता, जिस समय उसका ज्ञान-विज्ञान कम था और पाप कर्म में वह लिप्त रहता था। अब ज्ञान विज्ञान की वृद्धि होने के कारण वह उस कष्ट अर्थात ‘दुख-प्रतिकूलता-बन्धन’ को सरलता पूर्वक सहन कर लेता है, विशेष दुखी नहीं होता। यह दुख के अनुभव की कमी ज्ञान-विज्ञान की वृद्धि के कारण होती है। इस प्रकार का प्रभाव तो कर्मफलों के ऊपर पड़ सकता है। ऐसा संभव है, किन्तु यह नहीं होता कि अच्छे नये कर्मों के करने से पिछले बुरे कर्मों का फल कम हो जाता है या समाप्त हो जाते हैं। कर्मों का फल तो पूरा ही मिलता है। उसमें न्यूनता अधिकता नहीं होती है।