प्रश्न – क्या जीवात्मा के सारे के सारे कर्म भोगे जा कर कभी नितान्त समाप्त अर्थात शून्य भी हो जाते हैं?

उत्तर- ऐसा कभी नहीं होता कि किसी भी जीव का कर्माशय नितान्त रिक्त अर्थात् शून्य स्थिति वाला हो जाए। जैसे जीवात्मा अनादि, काल से अनन्त स्वरूप वाला है, वैसे ही उसके कर्म भी हैं। जीव मनुष्य योनि में होता है, तो अच्छे-बुरे बहुत से कर्म करता है। अच्छे कर्म अधिक होने पर मनुष्य योनि और बुरे कर्म अधिक होने पर पशु-पक्षी, कीट, पतंगादि की योनियों में ईश्वर द्वारा भेजा जाता है। वहाँ, बुरे कर्मों का फल भोगने से वे कम होते रहते हैं। जब पाप-पुण्य, अच्छे-बुरे कर्म बराबर हो जाते हैं, तब पुनः मनुष्य शरीर को धारण करता है। मनुष्य योनि में फिर बहुत अधिक मात्रा में अच्छे-बुरे कर्म करता है और फल स्वरूप आगे विभिन्न योनियों को प्राप्त करता है।

योगाभ्यास करके जीव अपने सभी अविद्या के संस्कारों को नष्ट करके जीवनमुक्त अवस्था को प्राप्त होकर मोक्ष में चला जाता है, तब भी उसका कर्माशय बचा ही रहता है। इस कर्माशय के आधार पर ही उसे मुक्ति को भोगने के पश्चात् मानव देह मिलता है। इस देह में पुनः नये कर्म होने लगते है और कर्माशय में पर्याप्त कर्म हो जाते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि किसी भी जीव के कर्म नितान्त शून्य, समाप्त कभी भी नहीं होते हैं।