प्रश्न – क्या कर्म बिना फल दिये भी नष्ट हो सकते हैं?
उत्तर- नहीं, बिना फल दिये कर्म कभी भी नष्ट नहीं होते।
जैसे हजारों गायों में बछड़ा अपनी माँ के पास ही जाता है, उसी प्रकार, जो किया हुआ कर्म है, अपने करने वाले के पीछे हो लेता है।
-चाणक्यनीति १३//१४
कोई कितना ही हाथ-पैर जोड़े, गिड़गिड़ाए, ग्लानि, दुख पश्चाताप की अनुभूति करे, दान दे, तीर्थ यात्रा करे, माला फेरे, जप करे, यज्ञ-तप करे, मौन-एकांत का सेवन करे, सेवा, परोपकार, सामाजिक कल्याण के कार्यों को करे, पुनरपि किये हुए कर्मों का फल भोगे बिना छुटकारा नहीं मिल सकता।
कर्म शुभ हो या अशुभ, चाहे वह ज्ञानपूर्वक किये गए हों या अज्ञान पूर्वक उसका फल अवश्य भोगना ही पड़ता है। करोड़ों जन्म, कल्प सृष्टि भी क्यों न बीत जाए बिना फल भोगे उन कर्मों का क्षय नहीं होता। दृष्ट अदृष्ट फल के उपभोग के निमित्त किए गए कर्मों का यदि तत्काल उसी समय फल प्राप्त न हो तो उस स्वरूप वाला अर्थात ‘बचा हुआ’ फल का निमित्त कर्म अर्थात प्रयोजन अभ्युदयाय अर्थात ‘तत्काल से अतिरिक्त’ वर्तमान के तथा भावी उत्कर्ष के लिए होता है, इसी जन्म में या अगले जन्म में कल्याण के लिए होता है।
-वैशेषिक दर्शन ६//२//१
कहीं-कहीं शास्त्रों में ऐसे वाक्यों का प्रयोग किया गया है कि जिनमें कुछ लोग यह अर्थ निकालते हैं कि ऐसा करने से कर्म नष्ट हो जाता है। ऐसे कर्म जिनका फल इस जन्म में मिला नहीं है तथा आगे जन्म होना भी नहीं है, जीव मुक्ति को प्राप्त कर लेता है, ऐसी स्थिति में जो कर्म शेष रहते हैं, उन कर्मों को मुक्ति से लौटकर जब मनुष्य जन्म मिलेगा, तब भोगेगा। तब तक वे ईश्वर के ज्ञान में बने रहेंगे। इन्हीं कर्मों को लम्बे काल तक अर्थात् मुक्ति के काल तक न भोगने के कारण नष्ट होना कह दिया गया है। वास्तव में वे नष्ट नहीं होते हैं।
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