प्रश्न – क्या कर्मों का फल जीव स्वयं भी ले सकता है?
उत्तर- इस विषय में एक बात जान लेनी आवश्यक है कि ‘फल भोगने में जीवात्मा परतन्त्र है’ इसका अर्थ यह नहीं लेना चाहिए कि जीवात्मा सर्वथा परतन्त्र है और अपने किसी भी कर्म का फल वह नहीं ले सकता। किन्हीं-किन्हीं कर्मों को फल जीवात्मा स्वयं ले सकता है। यथा किसी के प्रति मन में द्वेष उत्पन्न किया, अनिष्ट चिंतन किया तो ऐसे कर्म का फल वह मौन रहकर या गायत्री मंत्र का जप करके ले सकता है। अथवा दोनों प्रकार से ले सकता है। इसी प्रकार किसी के प्रति हिंसा करने पर अथवा किसी कार्य में आलस्य-प्रमाद करने पर, अथवा किसी कार्य को करने के दायित्व को भूल जाने आदि दोषों के प्रति भोजन छोड़कर, सेवा करके स्वयं भी फल ले सकता है। अथवा किसी की कुछ हानि कर देने पर जितने मूल्य की हानि हुई उतने रूपयों से क्षति पूर्ति करके भी दण्ड ले सकता है। इसमें जो न्यूवता-अधिकता रह जाएगी तो परमात्मा आगे उसका यथायोग्य संतुलन बना देगा।
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