प्रश्न – क्या ईश्वर मनुष्यों को अच्छे बुरे कर्म करने की प्रेरणा देता है?
उत्तर- ईश्वर जीव के कर्मों का, चाहे वह अच्छे हो या बुरे प्रेरक नहीं है। यदि ईश्वर मनुष्य के कर्मों का प्रेरक होता, तो अच्छे-बुरे कर्म का फल भी ईश्वर को ही मिलना चाहिये जीव को क्यों मिले।
यदि कर्म करने की प्रेरणा ईश्वर दे और फल जीव को मिले तो अकृताभ्यागम अर्थात ‘न किए की प्राप्ति’ का दोष हो जाता। शास्त्रीय सिद्धान्त यही है कि अपने द्वारा किये गये कर्म का फल अपने को ही मिलता है, दूसरे को नहीं और दूसरे द्वारा किये गये कर्मों का दूसरे को मिलता है, अपने को नहीं।
जीवात्मा इच्छा, राग-द्वेष, सुख-दुख प्रयत्न आदि गुणों से युक्त चेतन तत्व है। वह परमेश्वर के हाथ की कठपुतली नहीं है, जैसा ईश्वर चाहे वह करता रहे। जीव की अपनी स्वतंत्र सत्ता है और वह अपने कर्मों को करने में पूर्णरूपेण उत्तरदायी है। यदि जीव स्वयं कर्त्ता न होता तो भोक्ता भी न होता।
हाँ, इतनी बात इस विषय में समझनी चाहिये कि जब जीवात्मा अपने मन किसी अच्छे कार्य को करने विचार करता है, तो ईश्वर की ओर से अच्छे कार्य करने के लिए उत्साह, प्रसन्ता, निर्भयता आदि की भावना प्रदान की जाती है। इसके विपरीत जब जीवात्मा बुरे कार्य करने का विचार करता है, तब ईश्वर मन में भय, शंका, लज्जा आदि की भावना प्रदान करता है। यह भावना जीव के मन में किसी अच्छे-बुरे कर्म को करने न करने की इच्छा किये जाने के पश्चात् होती है, पूर्व नहीं। यदि परमेश्वर कार्य करने से पूर्व ही जीवों को प्रेरणा देवे तो, शास्त्रों में किए गए विविध विधान व निषेध व्यर्थ ही हो जाएँ अर्थात् उनकी आवश्यकता ही न रह जाए।
-वेदान्त दर्शन २//३//४२
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