प्रश्न – कर्मों को निष्काम बनाने के लिए क्या विधि अपनानी चाहिए?

उत्तर- कर्मों को निष्काम बनाने की विधि बहुत ही सरल है। बस कर्मों के लौकिक फल की इच्छा समाप्त करते ही कर्म निष्काम बन जाते हैं, अथार्त् मन में हम जो यह भावना रखते हैं कि मैं यह कर्म कर रहा हूँ, मुझे इसका ऐसा फल मिलना चाहिए, इसका ऐसा परिणाम होना चाहिए, इतना प्रभाव होना चाहिए, मुझे लोग अच्छा समझेंगे, मेरी प्रशंसा करेंगे, मेरे फोटो छापेंगे, मुझे मालाएँ पहनाकर सम्मान करेंगे, मेरे शिष्य, अनुयायी बनेंगे, मेरी जयजयकार करेंगे, मेरी कीर्ति दूर-दूर तक फैलेगी, मुझे धन देंगे, मेरी योजनाएँ सफल होंगी, ये भावनाएँ सकामता लाती हैं, इनसे युक्त कर्म सकाम होते हैं। अतः इन भावनाओं को छोड़कर, मुझे ईश्वर की प्राप्ति करनी है, ऐसा मानकर चलने से कर्म निष्काम होने लगते हैं।

इसके लिए अन्य प्रकार से भी उपाय करने चाहिए यथा-

१.     मुझे केवल ईश्वर की आज्ञा के अनुसार कर्तव्य कर्मों को करना है।

२.     मेरे पास जो भी शरीर, धन, विद्या, बल आदि साधन है, उन सबका निर्माता, रक्षक, स्वामी ईश्वर है, मैं नहीं हूँ, मैं इन सबका प्रयोक्ता मात्र हूँ।

३.     उपर्युक्त सभी साधनों का प्रयोग ईश्वराज्ञा अनुसार करुँगा, स्वेच्छा से अथवा जैसे समाज में अन्य व्यक्ति कर रहे हैं, ऐसा नहीं करुँगा

४.     शरीर, बुद्धि, धन आदि सभी साधनों का प्रयोग मैं ईश्वर की प्राप्ति के लिए ही करुँगा, लौकिक उद्देश्य धन, मान, प्रतिष्ठा के लिए नहीं करुँगा 

५.     कर्म करते हुए यह विचार बनाना चाहिए कि ईश्वर मेरे में है, ईश्वर मुझे देख, सुन, जान रहा है।

६.     कर्म करने के उपरान्त जैसा भी परिणाम, प्रभाव, फल मिले उसमें सन्तुष्ट रहना। मन में किसी भी प्रकार का शोक, चंचलता, चिन्ता आदि उत्पन्न नहीं करना चाहिए।

७.     ईश्वर से मन ही मन यह प्रार्थना करना कि हे परमेश्वर! मैं यह कार्य करने जा रहा हूँ, मुझे आप ऐसा सामर्थ्य, उत्साह, प्रेरणा प्रदान करें कि मैं अपनी ओर से ऐसी कल्पना न करुँ कि मुझे इस कर्म का यह फल मिले। मैं तो केवल कर्तव्य भावना से कार्य करुँ, ऐसी बुद्धि बनाओ।

८.     मन में यह दृढ़ विश्वास बनाना कि जब ईश्वर सर्वज्ञ, सर्वहितकारी, न्यायकारी, कर्मफलदाता है और वह जानता है कि किस कर्म का फल कब कितना और किस प्रकार से देना है तथा ईश्वर की ओर से मेरे द्वारा किए गए उत्तम कर्मों का फल शीघ्र या विलम्ब से न्यायपूर्वक मिलना ही है और कोई व्यक्ति इसे रोक भी नहीं सकता है, तो फिर मैं अपनी अल्पबुद्धि से मुझे इतना फल मिले, ऐसा मिले, इस समय मिले, ऐसी कामना क्यों करुँ?

९.     सभी साधन ईश्वर प्रदत्त हैं, तो उनसे प्राप्त सफलता का श्रेय मैं क्यों लूँ, यह तो ईश्वर को मिलना चाहिए। ऐसा विचार करके कर्म करने चाहिएं।