प्रश्न – कभी किसी का प्राण झूठ बोलने से बचता हो, तो भी नहीं बचाना चाहिए?

उत्तर- हमेशा सत्य के आश्रय से ही किसी का प्राण बचाना चाहिए। यदि कोई किसी के प्राण बचाने हेतू झूठ बोलता है, तो प्राण बच जायेगा। किन्तु, उस झूठ का फल पाप दुख भी भोगना पड़ेगा।

जैसे कोई चिकित्सक अपने मरणासन्न रोगी के समक्ष कहता है- कोई बात नहीं, आप निश्चिन्त रहो, आप ठीक हो जाओगे और रोगी के परिवार जनों से कहता है- मृत्यु निकट है। बाद में वह रोगी मर जाता है । ऐसी परिस्थिति में उपस्थित रोगी के परिजनों को यह पता लगेगा कि चिकित्सक झूठ बोलता है और उस पर से परिजनों का विश्वास उठ जायेगा।

कालान्तर में उन्हीं में से कोई परिजन रोगी अस्वस्थ होकर उसी चिकित्सक के पास जाता है। पुनः उस चिकित्सक के द्वारा सान्त्वना देने पर अब उसको चिकित्सक की बात पर विश्वास नहीं होता और अपने स्वास्थ्य के विषय में कोई धैर्य नहीं रख पाता है।