अब
आशा है कि इतना पढ़ने अथवा सुनने के पश्चात साईट के आरम्भ में कही गई लोगों में प्रचलित अवधारणाओं का बौद्धिक उत्तर प्राप्त हो गया होगा। फिर भी उनके उत्तर संक्षेप से नीचे दिए जा रहे है-
अवधारणा– सभी धर्म एक समान हैं।
उत्तर– धर्म अनेक नहीं एक ही होता है, जिसे मानव-धर्म भी कहा जाता है।
अवधारणा– हमें सभी धर्मों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।
उत्तर– क्योंकि धर्म एक ही होता है, इसलिए सही भावना भी एक ही होती है।
अवधारणा– हमें किसी भी धर्म की आवश्यकता नहीं। हमें बस अपनी सोच को सकारात्मक रखते हुए दूसरों के प्रति दुर्भावना छोड़ देनी चाहिए।
उत्तर– मानवता मनुष्य का अभिन्न अंग है। धर्म के वास्तविक मायनों को समझे बिना हम मनुष्य नहीं, पशु हैं। धर्म को जानने के बाद हमारी सोच अपने आप सकारात्मक हो जाती है और हम दूसरों के प्रति दुर्भावना नहीं रख पाते। लेकिन, यह आवश्यक नहीं कि जो व्यक्ति सकारात्मक सोच रखता है और जिसके दिल में दूसरों के प्रति कोई दुर्भावना नहीं, वह व्यक्ति धर्म के मर्म को समझने वाला ही हो।
अवधारणा– मन की शान्ति के लिए आध्यात्मिकता की तरफ झुकाव में कोई बुराई नहीं। आध्यात्मिकता के नाम पर प्रतिदिन मन्दिर आदि जाना, भिन्न-भिन्न उपवास रखना, ज्योतिषियों के पास जाना और भिन्न-भिन्न पुराणों की कथाओं का श्रवण करना पर्याप्त है।
उत्तर– मन की स्थायी शान्ति के लिए वास्तविक आध्यात्मिकता की तरफ झुकाव आवश्यक है और उसके लिए आध्यात्मिकता के नाम पर प्रचलित कर्मों की कोई आवश्यकता नहीं।
अवधारणा– विदेशी हर मामले में हमसे बेहतर हैं। सभी वैज्ञानिक अविष्कार विदेशियों ने ही किये हैं। विदेशियों के व्यवहार में धर्म के नाम पर किसी भी तरह का पाखंड व अंध-विश्वास नहीं है। खासकर यूरोपियन देशों ने हमसे बहुत अधिक भौतिक उन्नति की है। हमारी घटिया व्यवस्थाओं का कारण हमारे पूर्वज ही हैं, आदि आदि
उत्तर– इसके उत्तर में इससे पहले दी गई सामग्री ‘आज की व्यवस्थाएं और वैदिक व्यवस्थाएं- एक तुलनात्मक अध्ययन’ पढ़ अथवा सुन लेना प्रयाप्त है।
यदि हम इन उत्तरों के अनुरूप आचरण नहीं करते, तो ये उत्तर बौद्धिक व्यायाम से अधिक नहीं हैं।
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