प्रश्न – अपने पाप कर्मों का दुखरूप फल भोगने वाले व्यक्ति के दुख दूर करने का प्रयास करना क्या ईश्वर की न्याय व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं है?
उत्तर- रोगी, अभावग्रस्त, अनाथ, असहाय, निर्बल, दुखी व्यक्तियों को तन, मन, धन आदि किसी भी प्रकार से सहायता करके उनके दुख को दूर करना परमात्मा की व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं है, क्योंकि ऐसे व्यक्तियों की सहायता करना उनके दुखों को दूर करना प्रत्येक समर्थ व्यक्ति का कर्तव्य है। परमात्मा ने वेदों में, ऋषियों ने अपने ग्रन्थों में इसका निर्देश कर रखा है।
यदि दुखियों को सहायता करना परमात्मा की व्यवस्था में हस्तक्षेप माना जाएगा, तो फिर समाज-राष्ट्र में परोपकार, सेवा आदि की सारी क्रियाएँ ही व्यर्थ हो जाएँगी। चिकित्सालय, अनाथालय आदि सेवा संस्थान व सेवा कार्य सभी व्यर्थ होंगे। कोई किसी की ओर देखे ही क्यों, जाने ही क्यों कि यह दुखी है। ऐसी स्थिति में तो मनुष्य समाज, पशु समाज की तरह घोर स्वार्थी बन जाएगा। ईश्वर ने जो अन्धे, लूले, लंगड़े, अपाहिज, निर्बल, रोगी, निर्धन, अज्ञानी बनाए हैं, उनका दण्ड उनको ऐसा बनाने तक ही सीमित है। लंगड़े को चिकित्सा कर के उसे ठीक करना परमात्मा की फल व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं है, अपितु पुण्यार्जन है।
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